जाने कहाँ-कहाँ का चक्कर लगाया होगा !
छेड़ो मत इनको
बाहर निकालने दो इन्हें अपनी उपलब्धियाँ
भरने दो मधुकोष
छेड़ो मत इनको
बड़ा ही तुनुक है मिज़ाज
रंज हुईं तो काट खाएँगी तुमको
छोड़ दो इनको, करने दो अपना अकाम
छेड़ो मत इनको
रचने दो मधुछत्र
जमा हो ढेर-ढेर-सा शहद
भरेंगे मधुभाँड ग़रीब बनजारे के
आख़िर तुम तक तो पहुँचेगा ही शहद
मगर अभी छेड़ो मत इनको !
नादान होंगे वे
उनकी न बात करो
मारते हैं शहद के छत्तों पे कंकड़
छेड़ते हैं मधु-मक्खियों को नाहक
उनकी न बात करो, नादान होंगे वे
कच्ची होगी उम्र, कच्चे तजरबे
डाँट देना उन्हें, छेड़खानी करें अगर वे
तुम तो सयाने हो न ?
धीरज से काम लो
छेड़ो मत इनको
करने दो जमा शहद
भरने दो मधुकोष
रचने दो रस-चक्र
छेड़ो मत इनको !
छेड़ो मत इनको
बाहर निकालने दो इन्हें अपनी उपलब्धियाँ
भरने दो मधुकोष
छेड़ो मत इनको
बड़ा ही तुनुक है मिज़ाज
रंज हुईं तो काट खाएँगी तुमको
छोड़ दो इनको, करने दो अपना अकाम
छेड़ो मत इनको
रचने दो मधुछत्र
जमा हो ढेर-ढेर-सा शहद
भरेंगे मधुभाँड ग़रीब बनजारे के
आख़िर तुम तक तो पहुँचेगा ही शहद
मगर अभी छेड़ो मत इनको !
नादान होंगे वे
उनकी न बात करो
मारते हैं शहद के छत्तों पे कंकड़
छेड़ते हैं मधु-मक्खियों को नाहक
उनकी न बात करो, नादान होंगे वे
कच्ची होगी उम्र, कच्चे तजरबे
डाँट देना उन्हें, छेड़खानी करें अगर वे
तुम तो सयाने हो न ?
धीरज से काम लो
छेड़ो मत इनको
करने दो जमा शहद
भरने दो मधुकोष
रचने दो रस-चक्र
छेड़ो मत इनको !
कवि - नागार्जुन
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003
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