बातन की फुलझड़ियाँ छोड़ै
बखत पड़े तो चट मुँह मोड़ै
छन में शेर, छन ही में गीदड़
क्या सखी साजन ? ना सखि, लीडर
मारै मौज, मनावैं खैर
अपन अपन से जिनका वैर
रिखी-मुनी का देय नजीर
क्या सखि प्रीतम ? नहीं वजीर
चाहैं अमृत, चटावैं धूल
वादे गए जिन्हें सब भूल
कोई भी अब नाम न लेता
कौन, गँजेड़ी ? ना सखि, नेता
कल तक चढ़ा चुकी है शान
अब रस्ते पर पड़ी अजान
लगा रही बस रह-रह ठेस
क्या सखि, सिल है ? ना, कांग्रेस
कवि - नागार्जुन
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003
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