चीं-चीं चें-चें चटक-मटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
जै-जै राम सटाक-सटक है
फैल गई हिंसा की लीला
गंगा दूषित, जल है पीला
काँप रहा मजनू का टीला
घोंट-घाँट है, घटा-घटक है
घटकवाद है, उठा-पटक है
बंदूकों ने रंग जमाया
चरणसिंह ने भस्म रमाया
उधर पुलिस ने नाम कमाया
चीं-चीं चें-चैन चटक-मटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
यम का खुला हुआ फाटक है
छीना-झपटी का त्राटक है
ठगपंथी का ही नाटक है
जै-जै राम सटाक-सटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
नानाजी नव कामराज हैं
अटल प्रमुख हैं, बिना ताज हैं
पूर्ण क्रांति के साज-वाज हैं
कुटिल नीति यह कूट-कटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
आरक्षण का संरक्षण क्या
नौकरशाही का भक्षण क्या
भ्रष्ट तंत्र का है लक्षण क्या
जातिवाद की भूल-भटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
घाव घाव है, दवा नहीं है
घुटन घुटन है, हवा नहीं है
चूल्हा है, पर तवा नहीं है
राशन सीताराम सटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
शासन का जादुई यंत्र है
धन-कुबेर का महा मंत्र है
लोकनीति है पुलिस तंत्र है
हिंसा में क्या कहीं अटक है
पाँच नहीं यह एक घटक है
खुली जीभ का जादू देखो
कबीरा देखो, दादू देखो
झग्गल देखो, लादू देखो
करनी सीताराम सटक है
घटकवाद की उठा-पटक है
- 1978
कवि - नागार्जुन
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003
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