आम का पेड़ उस जगह निष्प्रयोजन था
परंतु आम का पेड़ होने से प्रयोजन था
घोंसला था
गिलहरी शाखों की गलियों में
आते-जाते दिखती थी
कोई योजना नहीं थी
और बहुत कुछ था -
पेड़ पर ऋतुएँ होतीं
ग्रीष्म, पतझड़ होती
धूप होती और छाया
वह एक ऐसी जगह थी
जहाँ किसी भी दिन
मेरा आना निष्प्रयोजन था
परंतु आम का पेड़ होने से
मेरा वहाँ पहली बार का आना
आये दिन का
पहला दिन हुआ था।
परंतु आम का पेड़ होने से प्रयोजन था
घोंसला था
गिलहरी शाखों की गलियों में
आते-जाते दिखती थी
कोई योजना नहीं थी
और बहुत कुछ था -
पेड़ पर ऋतुएँ होतीं
ग्रीष्म, पतझड़ होती
धूप होती और छाया
वह एक ऐसी जगह थी
जहाँ किसी भी दिन
मेरा आना निष्प्रयोजन था
परंतु आम का पेड़ होने से
मेरा वहाँ पहली बार का आना
आये दिन का
पहला दिन हुआ था।
कवि - विनोदकुमार शुक्ल
संकलन - अतिरिक्त नहीं
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें