भैणाँ मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी l
पीहड़ी पिच्छे पिछावाड़े रहि गई,
हत्थ विच्च रहि गई जुट्टी l
अग्गे चरखा पिच्छे पीहड़ा
मेरे हत्थों तन्द तरूटी l
भैणाँ मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी l
दाज जवाहर असाँ की करना,
जिस प्रेम कटवाई मुट्ठी l
उहो चोर मेरा पकड़ मँगाओ
जिस मेरी जिन्द कुट्ठी l
भैणाँ मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी l
भला होया मेरा चरखा टुट्टा,
मेरी जिन्द अजाबों छुट्टी l
बुल्ला सहु ने नाच नचाए,
ओत्थे धुम्म कड़ कुट्टी l
भैणाँ मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी l
हुट्टी = थक गई ; तरूटी = टूटी ; कुट्टी = डंके की चोट
रचनाकार - बुल्ले शाह
संकलन - बुल्लेशाह की काफियां
संपादक - डा. नामवर सिंह
श्रृंखला संपादक - डा. मोहिन्द्र सिंह
प्रकाशक - नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज़ के सहयोग से
अनामिका पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा.) लिमिटेड, 2003
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