बालू पर हवा के
असंख्य हस्ताक्षर थे
और उन्हें देखकर हैरान था मैं
कि मेरा हस्ताक्षर
हवा के हस्ताक्षर से
कितना मिलता है !
कैसे हुआ यह ?
क्या मैंने हवा की
नक़ल की है
या हवा ने चुरा लिया है
मेरा हस्ताक्षर ?
दोनों में से
एक-न-एक को
जाली ज़रूर होना चाहिए
मैंने सोचा
पर अब सवाल यह था
कि तय कैसे हो
और हो तो किस अदालत में
कि कौन-सा हस्ताक्षर जाली है
कवि - केदारनाथ सिंह
संकलन - उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 1995
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें