एक दिन कहा गया था
दुनिया की व्याख्या बहुत हो चुकी
ज़रूरत उसे बदलने की है
तब से लगातार
बदला जा रहा है
दुनिया को
बदली है अपने-आप भी
पर क्या अब यह नहीं लगता
कि और बदलने से पहले
कुछ
व्याख्या की ज़रूरत है ?
कवि - नेमिचंद्र जैन
संकलन - अचानक हम फिर
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1999
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