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मंगलवार, 22 जनवरी 2013

व्याख्या (Vyakhya by Nemichandra Jain)


एक दिन कहा गया था 
दुनिया की व्याख्या बहुत हो चुकी 
ज़रूरत उसे बदलने की है 
तब से लगातार 
बदला जा रहा है 
दुनिया को 
बदली है अपने-आप भी 
पर क्या अब यह नहीं लगता 
कि और बदलने से पहले 
कुछ 
व्याख्या की ज़रूरत है ?


कवि - नेमिचंद्र जैन 
संकलन - अचानक हम फिर 
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1999

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