अब न तो इतिहास है
न कोई विचारधारा
न ही इस अंतहीन अनंत में
भविष्य है -
अब नहीं बची है भाषा से आशा l
पहले जहाँ सब-कुछ था
वहाँ अब
कुछ नहीं है -
जहाँ कुछ नहीं है वहाँ शब्द हैं !
शब्द नहीं शब्द
यानी 'टेक्स्ट'
माने पाठ -
शब्द शब्द शब्द
केवल कुपाठ -
जहाँ शब्द हैं
वहाँ -
उनका अर्थ नहीं है
अनर्थ है -
यानी कि व्यर्थ है !
लेकिन -
व्यर्थ वा अनर्थ का भी
कहीं कोई
अर्थ नहीं है l
है तो है बस -
मात्र एक अन्धकार गर्त है !
चचा ग़ालिब को
डुबोया था -
फकत होने ने ;
यहाँ तो -
सारा खेल ही रचा है
निरर्थक न होने के रोने ने !
कवि - श्याम कश्यप
संकलन - जनपद कविता बुलेटिन - 10, समापन अंक
संपादक - निर्मल कुमार चक्रवर्ती
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