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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

उत्तर-आधुनिकता (Uttar aadhunikta by Shyam Kashyap)


अब न तो इतिहास है 
न कोई विचारधारा 
न ही इस अंतहीन अनंत में 
भविष्य है -
अब नहीं बची है भाषा से आशा l 

पहले जहाँ सब-कुछ था 
वहाँ अब 
कुछ नहीं है -
जहाँ कुछ नहीं है वहाँ शब्द हैं !

शब्द नहीं शब्द 
यानी 'टेक्स्ट'
माने पाठ -
शब्द शब्द शब्द 
केवल कुपाठ -

जहाँ शब्द हैं 
वहाँ -
उनका अर्थ नहीं है 
अनर्थ है -
यानी कि व्यर्थ है !

लेकिन -
व्यर्थ वा अनर्थ का भी 
कहीं कोई 
अर्थ नहीं है l 

है तो है बस -
मात्र एक अन्धकार गर्त है !

चचा ग़ालिब को 
डुबोया था -
फकत होने ने ;

यहाँ तो -
सारा खेल ही रचा है 
निरर्थक न होने के रोने ने !

कवि - श्याम कश्यप
संकलन - जनपद कविता बुलेटिन - 10, समापन अंक 
संपादक - निर्मल कुमार चक्रवर्ती 

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