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शनिवार, 1 जून 2013

हम अनिकेतन (Hum aniketan by Balkrishn Sharma 'Naveen')


हम अनिकेतन, हम अनिकेतन 
हम तो रमते राम हमारा क्या घर, क्या दर, कैसा वेतन ?

अब तक इतनी योंही काटी, अब क्या सीखें नव परिपाटी 
कौन बनाये आज घरौंदा हाथों चुन-चुन कंकड़-माटी 
ठाठ फकीराना है अपना बाघाम्बर सोहे अपने तन ?

देखे महल, झोंपड़े देखे, देखे हास-विलास मज़े के 
संग्रह के सब विग्रह देखे, जँचे नहीं कुछ अपने लेखे 
लालच लगा कभी पर हिय में मच न सका शोणित-उद्वेलन !

हम जो भटके अब तक दर-दर, अब क्या खाक बनायेंगे घर 
हमने देखा सदन बने हैं लोगों का अपनापन लेकर 
हम क्यों सने ईंट-गारे में हम क्यों बने व्यर्थ में बेमन ?

ठहरे अगर किसीके दर पर कुछ शरमाकर कुछ सकुचाकर 
तो दरबान कह उठा, बाबा, आगे जा देखो कोई घर 
हम रमता बनकर बिचरे पर हमें भिक्षु समझे जग के जन !
हम अनिकेतन !
                                                           - 1 अप्रैल, 1940


कवि - बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
संकलन - आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि : 'नवीन'
संपादक - भवानीप्रसाद मिश्र 
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली 

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