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रविवार, 10 मार्च 2013

जनहित का काम (Janhit ka kaam by Kedarnath Singh)

यह एक अद्भुत दृश्य था 

मेह बरसकर खुल चुका था 
खेत जुतने को तैयार थे 
एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था 
और एक चिड़िया बारबार-बारबार 
उसे अपनी चोंच से 
उठाने की कोशिश कर रही थी 

मैंने देखा 
और मैं लौट आया 
क्योंकि मुझे लगा, मेरा वहाँ होना 
जनहित के उस काम में 
दखल देना होगा 


कवि - केदारनाथ सिंह
संकलन - यहाँ से देखो
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983

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