यह एक अद्भुत दृश्य था
मेह बरसकर खुल चुका था
खेत जुतने को तैयार थे
एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था
और एक चिड़िया बारबार-बारबार
उसे अपनी चोंच से
उठाने की कोशिश कर रही थी
मैंने देखा
और मैं लौट आया
क्योंकि मुझे लगा, मेरा वहाँ होना
जनहित के उस काम में
दखल देना होगा
कवि - केदारनाथ सिंह
संकलन - यहाँ से देखो
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983
मेह बरसकर खुल चुका था
खेत जुतने को तैयार थे
एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था
और एक चिड़िया बारबार-बारबार
उसे अपनी चोंच से
उठाने की कोशिश कर रही थी
मैंने देखा
और मैं लौट आया
क्योंकि मुझे लगा, मेरा वहाँ होना
जनहित के उस काम में
दखल देना होगा
कवि - केदारनाथ सिंह
संकलन - यहाँ से देखो
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983
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