ये रात ! हवाओं की सोंधी सोंधी महक
ये खेल करती हुई चांदनी की नर्म दमक
सुगंध 'रात की रानी' की जब मचलती है
फ़ज़ा में रूहे-तरब करवटें बदलती हैं
ये रूप सर से क़दम तक हसीं जैसे गुनाह
ये आरिज़ों की दमक, ये फ़ुसूने-चश्मे-सियाह
ये धज न दे जो अजन्ता की सनअतों को पनाह
ये सीना, पड़ ही गई देवलोक की भी निगाह
ये सरज़मीन है आकाश की परस्तिश-गाह
उतारते हैं तेरी आरती सितारा-ओ-माह
सिजल बदन की बयां किस तरह हो कैफ़ीयत
सरस्वती के बजाये हुए सितार की गत
जमाले-यार तेरे गुलिस्तां की रह रह के
जबीने-नाज़ तेरी कहकशां की रह रह के
दिलों में आईना-दर-आईना सुहानी झलक
रूहे-तरब = आह्लाद की आत्मा आरिज़ों = कपोलों
फ़ुसूने-चश्मे-सियाह = काली आंखों का जादू सनअतों = कलाओं
सरज़मीन = धरती सितारा-ओ-माह = चांद-सितारे
सरज़मीन = धरती सितारा-ओ-माह = चांद-सितारे
जमाले-यार = प्रेयसी की सुन्दरता जबीने-नाज़ = प्रेयसी का माथा
कहकशां = आकाशगंगा
कहकशां = आकाशगंगा
शायर - फ़िराक़ गोरखपुरी
संकलन - उर्दू के लोकप्रिय शायर : फ़िराक़ गोरखपुरी
संपादक - प्रकाश पंडित
प्रकाशक - हिन्द पॉकेट बुक्स, दिल्ली,
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