मुस्काता संकेत-भरा नभ
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
विद्युत के चल स्वर्णपाश में बँध हँस देता रोता जलधर ;
अपने मृदु मानस की ज्वाला गीतों से नहलाता सागर ;
दिन निशि को, देती निशि दिन को
कनक-रजत के मधु-प्याले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
मोती बिखरातीं नूपुर के छिप तारक-परियाँ नर्तन कर ;
हिमकण पर आता जाता, मलयानिल परिमल से अंजलि भर ;
भ्रान्त पथिक से फिर-फिर आते
विस्मित पल क्षण मतवाले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
सघन वेदना के तम में, सुधि जाती सुख-सोने के कण भर ;
सुरधनु नव रचतीं निश्वासें, स्मित का इन भीगे अधरों पर ;
आज आँसुओं के कोषों पर,
स्वप्न बने पहरे वाले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
नयन श्रवणमय श्रवण नयनमय आज हो रही कैसी उलझन !
रोम रोम में होता री सखी एक नया उर का-सा स्पन्दन !
पुलकों से भर फूल बन गये
जितने प्राणों के छाले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
कवयित्री - महादेवी वर्मा
संकलन - सन्धिनी
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 2005
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
विद्युत के चल स्वर्णपाश में बँध हँस देता रोता जलधर ;
अपने मृदु मानस की ज्वाला गीतों से नहलाता सागर ;
दिन निशि को, देती निशि दिन को
कनक-रजत के मधु-प्याले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
मोती बिखरातीं नूपुर के छिप तारक-परियाँ नर्तन कर ;
हिमकण पर आता जाता, मलयानिल परिमल से अंजलि भर ;
भ्रान्त पथिक से फिर-फिर आते
विस्मित पल क्षण मतवाले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
सघन वेदना के तम में, सुधि जाती सुख-सोने के कण भर ;
सुरधनु नव रचतीं निश्वासें, स्मित का इन भीगे अधरों पर ;
आज आँसुओं के कोषों पर,
स्वप्न बने पहरे वाले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
नयन श्रवणमय श्रवण नयनमय आज हो रही कैसी उलझन !
रोम रोम में होता री सखी एक नया उर का-सा स्पन्दन !
पुलकों से भर फूल बन गये
जितने प्राणों के छाले हैं !
अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ?
कवयित्री - महादेवी वर्मा
संकलन - सन्धिनी
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 2005
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें