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मंगलवार, 5 मार्च 2013

कर्फ्यू में एक घन्टे की छूट (Curfew mein ek ghante ki chhoot by Dhoomil)

मैं चिड़ियाघर से वापस आ रहा था 
और तुम लौट रहे थे खेल के मैदान से 
जब मैंने अपने छोटे भाई के गायब होने की खबर 
तुम्हें दी l 

हम कि जो प्यारे दोस्त थे l 
घबराने की कोई बात नहीं l 
गोलीकान्ड के बाद 
लड़कों का गायब होना नई बात नहीं है 
यह शान्ति का मसला है 
लेकिन खबरों के मलबों के नीचे 
सच्चाई का पता कब चला है ?
घबराने की कोई बात नहीं और 
यह खतरनाक भी नहीं 
जितना किसी लडकी का पीछा करना l 
देह के जलाशय में 
तैरना न जानते हुए भी 
कूल्हों के कशर कूद, भरना l 

आखिरकार लड़का अन्तिम बार 
कहाँ देखा गया l 
संसद की ओर जाने वाली सड़क पर
हरी कमीज़ पहने हुए,
और यह अच्छी बात है कि 
उसने लाल स्कार्फ को 
झण्डे की तरह तान लिया था 
जिसे सुबह उसने पीछा करके 
पड़ोस की लड़की से छीना था 

यौवन ऐसा सिक्का है 
जिसके एक ओर प्यार 
और दूसरी  तरफ गुस्सा छापा है l 
कम-से-कम यह एक सबूत है 
उसके जिन्दा रहने का 
कि वह 'लोकसभा-भवन' की ओर जा रहा था l 
महज लाल स्कार्फ के साथ 
जिसे उसने झण्डे की तरह उठा रखा था l 

और अभी उसके 
अपने 'मतदान' के खिलाफ 
होने का सवाल ही उठता नहीं था 
क्योंकि वह एक साथ चुन लेना चाहता है -
तितलियाँ, स्कार्फ, होंठ और फूलों 
के जादुई रंग l 

पेट और प्रजातन्त्र के बीच का सम्बन्ध 
उसके पाठ्यक्रम में नहीं है l 

वह एक दुधमुँही दिलचस्पी है 
कुलबुल जिज्ञासा है 
जिसे मारने के लिए इस पृथ्वी पर 
अभी कोई गोली नहीं बनी l 
(घनी-घनी उसकी बरौनियों के बीच की 
हवापट्टी पर दिवास्वप्नों की गूँजें 
उतरती हैं l )

और कर्फ्यू में शान्त ठण्डी सड़क पर 
सैनिक दस्तों के जूतों से 
कितनी सफेद और मार्मिक ध्वनि 
निकल रही है ...
जनतन्त्र...जनतन्त्र...जनतन्त्र...जनतन्त्र 

कवि - धूमिल 
संकलन - सुदामा पाँड़े का प्रजातंत्र 
संपादन एवं संकलन - रत्नशंकर 
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2001

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