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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

एक कवि से बातचीत (Conversation with a poet by Miroslav Holub)



क्या तुम कवि हो?
              हाँ, मैं हूँ.
तुम्हें कैसे मालूम?
             मैंने कविताएँ लिखी हैं.
अगर  कविताएँ लिखी हैं, तो इसका मतलब है कि तुम कवि थे.
 लेकिन अब?
             
मैं फिर एक रोज़ कविता लिखूँगा.
तो उस हालत में शायद तुम किसी दिन फिर कवि हो सको. लेकिन तुम कैसे जानोगे कि वह कविता है?
             वह आख़िरी कविता जैसी ही कविता होगी.
तब तो तय है कि वह कविता नहीं होगी. कविता सिर्फ एक बार होती है और
कभी वैसी ही दुबारा नहीं हो सकती.
             मुझे लगता है कि वह उतनी ही अच्छी होगी.
तुम इतना  निश्चित  कैसे हो सकते हो?  कविता का गुण भी सिर्फ एक बार के लिए होता है
और वह तुम पर नहीं हालात पर निर्भर होता है.
              मुझे लगता है हालात भी वैसे ही होंगे.
अगर तुम्हें यह लगता है तब तो तुम कवि नहीं होगे और न कभी कवि थे.
तुम्हें कैसे लगता है कि तुम कवि हो?
              शायद - मैं ठीक-ठीक नहीं जानता. और तुम कौन हो?



चेक कवि - मिरोस्लाव होलुब (1923 -1998) 
   संकलन - पोएम्स : बिफोर एंड आफ्टर
चेक से अंग्रेज़ी अनुवाद - एवाल्द ओसर्स  
प्रकाशक - ब्लडैक्स बुक्स, न्यूकैसल, इंगलैंड, 1990
   अंग्रेज़ी से अनुवाद: अपूर्वानंद

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