विपदायें आते ही,
खुलकर तन जाता है ;
हटते ही
चुपचाप सिमट ढीला होता है ;
वर्षा से बचकर
कोने में कहीं टिका दो,
प्यार एक छाता है
आश्रय देता है, गीला होता है.
कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - कविताएँ-2
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की 'कुआनो नदी' और 'जंगल का दर्द' से पहले की सारी कविताएँ दो खण्डों में उपलब्ध हैं. प्रस्तुत कविता सर्वेश्वरदयाल के 'एक सूनी नाव' (1963 -1966) नामक संग्रह से लेकर कविताओं के दूसरे खंड में संकलित की गई है.
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