हल्लो राजा !
कभी-कभी तो कठिन धूप में
चल्लो राजा !
कभी-कभी तो चिन्ता-भय से
गल्लो राजा !
कभी-कभी तो जठरागिन में
जल्लो राजा !
जब तिनके-भर सुख की खातिर
स्याह जंगलों-जैसे दुक्खों से जुज्झोगे
तब बुज्झोगे
परजा होना खेल नहीं है
किसी जनम में
इसका सुख से मेल नहीं है !
मैंने पूछा :
राजा, कैसी है तुकबन्दी ?
राजा बोले :
बेहद गन्दी !
कवि - राकेश रंजन
संकलन - अभी-अभी जनमा है कवि
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2007
परजा होना खेल नहीं है
जवाब देंहटाएंवाह!बेहतरीन कविता |
बहुत अच्छी कविता |
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