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शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

घर पहुँचना (Ghar pahunchana by Kunwar Narayan)



हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर
अपने अपने घर पहुँचना चाहते 

हम सब ट्रेनें बदलने की 
झंझटों से बचना चाहते

हम सब चाहते एक चरम यात्रा
और एक परम धाम

हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं
और घर उनसे मुक्ति

सचाई यूँ भी हो सकती है
कि यात्रा एक अवसर हो
और घर एक संभावना

ट्रेनें बदलना
विचार बदलने की तरह हो
और हम जब जहाँ जिनके बीच हों
वही हो
घर पहुँचना


कवि - कुँवर नारायण
संग्रह - कोई दूसरा नहीं
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1993


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