पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुर अलख जगाया है.
कहूँ वैर पड़ा कहूँ बेली हो,
कहूँ मजनूँ हो कहूँ लेली हो,
कहूँ आप गुरु कहूँ चेली हो,
आप आप का पन्थ बताया है.
पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुर अलख जगाया है.
कहूँ मस्जिद का वरतारा है,
कहूँ बणिया ठाकुरद्वारा है,
कहूँ बैरागी जटधारा है,
कहूँ शेख नबी बण आया है.
पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुर अलख जगाया है.
कहूँ तुर्क हो कलमा पढ़ते हो,
कहूँ भगत हिन्दू जप करते हो,
कहूँ घोर गुफा में पड़ते हो,
कहूँ घर घर लाड लडाया है.
पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुर अलख जगाया है.
बुल्ला मैं थीं बेमुहताज होया,
महाराज मिलिआ मेरा काज होया,
दरस पीआ का मुझहे इलाज होया,
आपे आप मैं आपु समाया है.
पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुर अलख जगाया है.
रचनाकार - बुल्ले शाह
संकलन - बुल्लेशाह की काफियां
संपादक - डा. नामवर सिंह
श्रृंखला संपादक - डा. मोहिन्द्र सिंह
प्रकाशक - नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज़ के सहयोग से
अनामिका पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा.) लिमिटेड, 2003
पंजाबी सूफी शायर बुल्ले शाह (1680–1757) कादरिया सिलसिले से जुड़े हुए थे. 'बुल्लेशाह की काफियां' किताब के परिचय में कुलजीत शैली ने लिखा है, अपने रब और अपने मुर्शिद (गुरु) शाह इनायत कादरी के प्रति इश्क के भावात्मक वेग ने उनकी शायरी को नई भंगिमा दी. इस "शायरी के वस्त्र देसी काफियों के हों या विदेशी सिहरफियों के, यह दोहड़ों, गाँठों, बारहमासों के रूप में लिखी जाए या अठवारे के रूप में, उसकी वाणी मानवता की मुक्ति के लिए है." इसकी मस्ती और शोख अंदाज़ के कायल तो हम सभी हैं ही.
बुल्ला मैं थीं बेमुहताज होया,
जवाब देंहटाएंमहाराज मिलिआ मेरा काज होया,
दरस पीआ का मुझहे इलाज होया,
आपे आप मैं आपु समाया है.
पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुर अलख जगाया है.waaah waah bulle shah mahan kavi the wakai unhone prem ka alakha jagaya ...aur aap poorva ji kya kehu aapke liye ...wakai bahut bada nek kaam aap ker rehi hai peedhiyo ke liye ek achha sankalan ...badhai ...rakesh mutha