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गुरुवार, 9 अगस्त 2012

शायद (Shayad by Rajkamal Chaudhary)



सरदी की शाम
पार्क में
घने कुहासे की परछाईं में
किसी झाड़ के बीच
किसी पेड़ के नीचे
उन्मादों से तन-मन सींचे
नित्य
किसी परछाईं का परछाईं से
मिलना
घुल-मिल जाना
बहुत भला लगता है तुमको
हम सबको
शायद...

क्योंकि
अँधेरे से हम सबको बहुत प्रेम है
हेम-क्षेम
कि,
क्योंकि अन्ध हम
क्योंकि पिता हम सबका है तम 
क्योंकि उजाले से हम सब डरते हैं
छिपकर पाप सभी करते हैं
लाज एक बंधन है तुमको
हम सबको
शायद... 


*तम - अन्धकार
कवि - राजकमल चौधरी
संग्रह - विचित्रा
संकलन, संपादन - देवशंकर नवीन 
प्रकाशक - राजकाल प्रकाशन, दिल्ली, 2002


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