मेरी प्यारी बेटी सुमिता -
पाँच साल की
अभी नहीं वह -
कमरे में आ चुपके, मुझको
देख एकटक, बोली,
"दद्दू, मुझे छोड़कर
भला, चले जाओगे क्या तुम ?"
मैंने पूछा,
"क्यों कहती हो ?
कहाँ चला जाऊँगा मैं ?" - वह
चुप रह क्षण-भर, बोली,
"तुम जो मर जाओगे !!"
विस्मय हुआ मुझे !
वह नहीं समझती अब तक
क्या है मृत्यु ?
सूँघ उसका सिर, बोला हँसकर,
"किसने तुझसे कहा ?
नहीं तो, तुझे छोड़कर
दद्दू भला कहाँ जाएगा ?-
बतलाओ भी
तुझसे किसने कहा ?"
ध्यान से देख मुझे वह
बोली, "दद्दू, हमें किसी ने
नहीं बताया !"
भारी स्वर में कहा,
"ज्ञात है मुझे स्वयं ही !
मुझे छोड़कर मत जाना तुम,
कभी न जाना !"
आँखें भर आईं !...
मैं भावावेग रोककर
बोला, "सोना, बड़ा बनाकर
पहले तुझको
पीछे जाऊँगा मैं !"
"कभी नहीं !" उत्तेजित
स्वर में बोली,
"हम होंगे ही नहीं बड़े, जब
खाएँगे ही नहीं -
बड़े तब कैसे होंगे ?"
सुनकर उसका तर्क,
गोद में लेकर उसको
प्यार किया मैंने,
उसका सिर सूँघ, चूमकर !
उसको समझाया,
लिपटाकर सहज गले से,
"बेटा, सभी नहीं मरते -
मैं भी उनमें हूँ
जो न कभी मरते !
मैं नहीं मरूँगा, तुझसे
सच कहता हूँ !"
समझ गई वह भाव ह्रदय का
उसे छोड़कर
मैं न कभी मरना चाहूँगा ! -
मरने पर भी
मैं उसका ही बना रहूँगा !
दीर्घ साँस निकली
उसके उर से अनजाने,
सुख संतोष झलक आया
द्रुत आतुर मुख पर -
लिपट गई वह मेरे उर से
मुग्ध भाव-सी !
कवि - सुमित्रानंदन पन्त
संकलन - स्वच्छंद
प्रमुख संपादक - अशोक वाजपेयी, संपादक - अपूर्वानंद, प्रभात रंजन
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2000
Such a beautiful poetry for a beautiful person by a beautiful person.
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