अभी सन्तरे के आने में देर है
वहाँ प्लेट में रखा है छुरी-काँटा
पनीर
मक्खन
सूप
काली मिर्च
और इन सबके साथ
खूब सिंका हुआ लाल टोस्ट
जब मैं उसे काटता हूँ
कच्ची लकड़ी की एक अजीब-सी गंध
भर जाती है मेरे नासा-पुटों में
चीनिया केले-सा
वहाँ बैठा है चौखट पर
एक गुमसुम विडाल
बँगले की खिड़की से आती हुई हवा
ढकेल रही है धूप को
बँगले के बाहर
धूप वहाँ हिल रही है खिड़की पर
जैसे कोई झीना वस्त्र
सुन्दर
चमकता हुआ स्क्वैश
रखा है बरामदे में
अभी सन्तरे के आने में देर है
कोई दो हफ्ते बाद
हल्दी के रंगवाला सुन्दर सन्तरा
शान से पाँव रखेगा
घरों की मेजों पर
लेकिन अभी !
अभी तो देर है
अभी कोई चिट्ठी आयी नहीं उसकी l
कवि - शक्ति चट्टोपाध्याय
संकलन - शंख घोष और शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएं
अनुवाद - केदारनाथ सिंह
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1987
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