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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

रहलीं करत दूध के कुल्ला (Rahaleen karat doodh ke kulla by Vishvanath Prasad Shaida)


रहलीं करत दूध के कुल्ला
छिल के खात रहीं रसगुल्ला
सखी हम त खुल्लम खुल्ला, झूला झूलत रहीं बुनिया फुहार में
                                                सावन के बहार में ना

हम त रहलीं टह-टह गोर
करत रहलीं हम अँजोर
मोर अँखिया के कोर, धार कहाँ अइसन तेग भा कटार में
                                              चाहे तलवार में ना

हँसलीं, चमकल मोरा दाँत
कइलस बिजुली के मात
रहे अइसन जनात, दाना कहाँ अइसन काबुली अनार में,
                                              सुघर कतार में ना

जब से आइल सवतिया मोर
सुख लेलसि हमसे छोर 
झरे अँखिया से लोर, भइया मोर परल बा 'शैदा'-मझधार में 
                                           सुखवा जरल भार में ना 


भोजपुरी कवि - विश्वनाथ प्रसाद शैदा 
संकलन - हिन्दी की जनपदीय कविता 
संपादक - विद्यानिवास मिश्र 
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 2002

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