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गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

जहाँ सुख है (Jahan sukh hai by Ajneya)


जहाँ सुख है 
वहीं हम चटक कर 
टूट जाते हैं बारम्बार
जहाँ दुखता है
वहाँ पर एक सुलगन   
पिघला कर हमें 
फिर जोड़ देती है 


कवि - अज्ञेय 
संकलन - ऐसा कोई घर आपने देखा है  
प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस,दिल्ली, 1986

1 टिप्पणी:

  1. yeh kitani khoobsurat hai ise batane ke kiye mere paas shabd nahi hain. Kya Gaagar mein saagar ki upma do jaa sakti hai isko? Not sure but just too striking. it took me few seconds and two rounds of reading to get to the point..............

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