कब तक दिल की ख़ैर मनायें, कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे, कब तक याद न आओगे
बीता दीद-उमीद का मौसम, ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल, कब बरखा बरसाओगे
अह्दे-वफ़ा या तर्के-मुहब्बत, जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है, हमसे क्या मनवाओगे
किसने वस्ल का सूरज देखा, किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओंवाले कौन थे क्या थे, उनको क्या जतलाओगे
'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर बसना भी, लुट जाना भी
तुम उस हुस्न के लुत्फ़ो-करम पर कितने दिन इतराओगे
- अक्टूबर,1968
दीद-उमीद = देखने की आशा, अह्दे-वफ़ा = वफ़ादारी का प्रण, तर्के-मुहब्बत = प्रेम- संबंध का विच्छेद, गेसुओंवाले = जुल्फ़ोंवाले, लुत्फ़ो-करम = कृपाओं
शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
संकलन - सारे सुख़न हमारे
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1987
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