लेटर बॉक्स पर चोंच मारती है चिड़िया
अभी डाकिये के आने का वक्त नहीं हुआ है
तेज होती जा रही है धूप
अपनी चोंच को चाबी में
बदल डालने को उत्सुक लगती है चिड़िया
जैसे खोल डालेगी लेटर बॉक्स
उड़ चलेगी सारी चिट्ठियाँ लेकर
वह ले जाएगी चिट्ठियाँ
हवा, पानी, धूप और बुरी नजरों से
बचाते हुए
समय से बहुत पहले ही पहुँचा देगी उन्हें
लोग चौंक उठेंगे
एक नये डाकिये को देखकर
अब तो डाकिये की तरह
नहीं दिखता डाकिया
पता भी नहीं चलता
उसका आना और जाना
कम लिखी जा रही चिट्ठियाँ
पर अपनी जगह मुस्तैद खड़ा है लेटर बॉक्स
चिट्ठियों की प्रतीक्षा में
कई बार लगता है जैसे
आगे निकल भागेगा चौराहा
और औंधे मुँह गिर पड़ेगा लेटर बॉक्स
अभी जबकि सबसे ज्यादा व्यस्त है चौराहा
किसी की नजर लेटर बॉक्स पर नहीं है
उस पर चहलकदमी करती हुई चिड़िया
ढूँढ़ रही है किसी को भीड़ में
वह आवाज देने लगी है
शायद उस आदमी को
जो बड़े जतन से रखता है एक चवन्नी
और थरथराते हाथों से डालता है पोस्टकार्ड
लेटर बॉक्स के अंदर
पोस्टकार्ड पर उसकी लिखावट नहीं होती
पर भाषा उसी की होती है
एक आदिम भाषा
एक आदिम संदेश
उसी चिड़िया की पुकार की तरह
कवि - संजय कुंदन
संग्रह - कागज के प्रदेश में
प्रकाशक - किताबघर, दिल्ली, 2001
badhe khusoorat bibm ki kavita hai
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