Translate

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

घंटी (Ghantee by kunwar Narayan)


फ़ोन की घंटी बजी
मैंने कहा - मैं नहीं हूँ
          और करवट बदलकर सो गया l

दरवाज़े की घंटी बजी
मैंने कहा - मैं नहीं हूँ
          और करवट बदलकर सो गया l

अलार्म की घंटी बजी
मैंने कहा - मैं नहीं हूँ
          और करवट बदलकर सो गया l

एक दिन 
मौत की घंटी बजी...
हड़बड़ा कर उठ बैठा - 
मैं हूँ - मैं हूँ - मैं हूँ 
          मौत ने कहा -
          करवट बदलकर सो जाओ l

       
कवि - कुँवर नारायण 
संकलन - इन दिनों 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2002

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें