फ़ोन की घंटी बजी
मैंने कहा - मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया l
दरवाज़े की घंटी बजी
मैंने कहा - मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया l
अलार्म की घंटी बजी
मैंने कहा - मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया l
एक दिन
मौत की घंटी बजी...
हड़बड़ा कर उठ बैठा -
मैं हूँ - मैं हूँ - मैं हूँ
मौत ने कहा -
करवट बदलकर सो जाओ l
कवि - कुँवर नारायण
संकलन - इन दिनों
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2002
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