तुम्हारे बिना
काटे नहीं कटा आज का दिन l
लगा -
दिन नहीं, विषुवत रेखा है ;
पृथिवी की इस मेखला से
किसी की भी तो मुक्ति नहीं l
पोर-पोर काट डाला
पर -
नहीं ही कटा l
दिन था, कि
जिसने शाम तक
मुझे ही काट कर रख दिया l
परन्तु तुम्हारे आते ही
लगा -
कितनी छोटी है
यह समस्त आयु,
कम से कम
आज के इस एक दिन के बराबर ही होती l
कवि - नरेश मेहता
किताब - 'तुम मेरे मौन हो' से 'समिधा, श्रीनरेश मेहता का सम्पूर्ण काव्य', खंड - 1 में संकलित
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1997
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