किसी भी उजाले के छोटे से गड्ढे में
जाकर मुँह धोने की
खोज -
रोज़-रोज़ !
किसी भी सड़क पर जा भीड़ या कि पतझर में
अपने कुछ होने की
खोज -
रोज़-रोज़ !
अपने ज़माने की एक अप्रिय दुनिया में
अपने प्रिय कोने की
खोज -
रोज़-रोज़ !
कवि - श्रीकांत वर्मा
किताब - श्रीकांत वर्मा रचनावली में मायादर्पण से संकलित
संपादक - अरविंद त्रिपाठी
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1995
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