आ बचवा, चल चिलम लगा दे !
रात भई, जी अकुलाता है
कैसा तो होता जाता है
ऊ ससुरा रमदसवा सरवा
अब तक रामचरित गाता है
रमदसवा जल्दी सो जाए
ऐसा कोई इलम लगा दे !
आ बचवा, अन्दरवा आजा
हौले से जड़ दे दरवाजा
रामझरोखे पे लटका दे
तब तक यह बजरंगी धाजा
हाँ, अब सब कुछ बहुत सही है
फट से फायर फिलम लगा दे !
कवि - राकेश रंजन
संग्रह - अभी-अभी जनमा है कवि
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2007
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