एक थी चंचल राजकुमारी
महलों की रौनक सब की दुलारी l
शौक था उसका सीटी बजाना
मीठी धुन में गाना गाना ll
राजा रानी को चिंता सताती
सीटी की धुन कभी न भाती l
लड़की की जाति है उसने पाई
फिर भी लाज कभी ना आई ll
ब्याह इससे कौन रचाए
आखिर इसको कौन समझाए l
तभी दिमाग में सूझी एक चाल
मुकाबला करवाएं हम तत्काल ll
इससे बढ़िया जो सीटी बजाए
ब्याह वह उसी से रचाए l
आधा राज इनाम में पाए
शान से अपना जीवन बिताए ll
दूर-दूर से राजकुमार थे आए
सीटी पर धुन खूब सुनाए l
सीटी बजा कर मुंह भी फुलाए
फिर भी राजकुमारी को हरा न पाए ll
चमक उठे राजकुमारी के नयन
मुस्कुराई वह मन ही मन l
होंठ दबाती हंसी छिपाती
झुक कर राजकुमारों को सुनाती ll
गाल फुला कर पेट फुलाया
सीटी पर इतना जोर लगाया l
शादी पर यूँ दिल ललचाया
फिर भी कोई मुझे हरा न पाया ll
राजकुमार थे हार से परेशान
मिट गई थी अब उनकी शान l
लगता है,राजकुमारी को जादू है आता
वरना हमको कौन हराता ?
तभी बढ़ कर बोला एक राजकुमार
मान गया मैं तुमसे हार l
कितनी बढ़िया सीटी बजाती
धुन में मुझको तुम उलझाती ll
सच्चाई सुन सब रह गए हैरान
खुशी से राजकुमारी ने किया ऐलान l
हार मानने से यह न कतराए
सच्ची बात से न घबराए ll
अहंकार नहीं है इसमें
शादी करूँगी मैं इसी से ll
रचनाकार - सुनीति नामजोशी
मूल - फेमिनिस्ट फेबल्स
मूल - फेमिनिस्ट फेबल्स
किताब - बोलती है भाषा
काव्य रूपांतरण - आरती श्रीवास्तव
प्रकाशक - निरंतर, दिल्ली, 2002
नारीवादी सिद्धांतों की बात कथा से कविता में और अपनी ज़िन्दगी में लानेवाली आरती को याद करते हुए जिसने छंद और लय से ज़्यादा भावना की परवाह की है...
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