कोई धड़कन
न कोई चाप
न संचल (हलचल?)
न कोई मौज
न हलचल
न किसी साँस की गर्मी
न बदन
ऐसे सन्नाटे में इक आध तो पत्ता खड़के
कोई पिघला हुआ मोती
कोई आँसू
कोई दिल
कुछ भी नहीं
कितनी सुनसान है ये राहगुज़र
कोई रुखसार तो चमके, कोई बिजली तो गिरे l
शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 2004
ख़्वाज़ा अहमद अब्बास ने ठीक ही कहा था कि "मख़्दूम एक धधकती ज्वाला थे और ओस की ठंडी बूँदें भी...वे बारूद की गंध थे और चमेली की महक भी."
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