प्रिय भाई,
एक और इतवार, एक और पत्र !
...कमाल की बात है न, मीशले कहता है कि पहले प्रेम मकड़ी के जाले सा नाजुक और हल्का होता है और धीरे-धीरे एक मज़बूत रस्सी बनता है. किंतु यह होता है केवल विश्वास की बिना पर.
...मेरे निकट प्रेम और मित्रता अनुभूति मात्र न होकर सघन क्रियाशीलता हैं. स्वाभाविक है कि वह कर्म और यत्न की माँग करे और बहुत संभव है उसके फलस्वरूप थकान और खालीपन हमारे हिस्से में आएँ.
...कुछ मित्रताएँ तोड़ना कभी-कभी बहुत मुश्किल हो जाता है. पर अगर मुझे स्टूडियो में जाकर सोचना पड़े कि हर महत्त्वपूर्ण बात से बचते हुए, फालतू बातों पर बात करते रहो, और कम से कम आनेवाले कल को लेकर तो अपने विचार अपने पास ही रखो - तो वह मुझे एक अलगाव की अपेक्षा अधिक दुःख देगा. मेरे निकट सच्ची मित्रता का महत्त्व बहुत अधिक है और उसके एवज में तथाकथित मित्रता को जगह देना संभव नहीं. अगर दोस्ती की इच्छा दोनों ओर से यक्साँ हो, तब कई मतभेद होते हुए भी, अलगाव उतनी सहजता से नहीं आ पाता - कुछ ग़लतफ़हमियाँ या लड़ाइयाँ होती भी हैं तो वे समय के साथ मिटती जाती हैं. लेकिन नकली मित्रता में कड़वाहट का आना तय है - चूँकि उसमें स्वतंत्रता की कोई जगह नहीं है. भले ही व्यक्ति अपने असली भावों को अभिव्यक्ति ना दे, वह (वे) दबे पाँवों आकर उस सम्बन्ध को घुन की तरह लग जाते हैं और दोनों में से किसी को कोई भी लाभ पहुँचा सकने में असमर्थ होते हैं. जहाँ मित्रता मात्र एक शब्द है, वहाँ अविश्वास है और उससे जुड़े सब तरह के षडयंत्र भी. यहाँ थोड़ी सी आपसी समझ और सच्चाई, जीवन की कठिनाई काफी कम कर सकती है.
...तो विदा भाई, जल्द लिखना.
तुम्हारा ही विन्सेंट
लेखक - विन्सेंट वान गॉग
एक और इतवार, एक और पत्र !
...कमाल की बात है न, मीशले कहता है कि पहले प्रेम मकड़ी के जाले सा नाजुक और हल्का होता है और धीरे-धीरे एक मज़बूत रस्सी बनता है. किंतु यह होता है केवल विश्वास की बिना पर.
...मेरे निकट प्रेम और मित्रता अनुभूति मात्र न होकर सघन क्रियाशीलता हैं. स्वाभाविक है कि वह कर्म और यत्न की माँग करे और बहुत संभव है उसके फलस्वरूप थकान और खालीपन हमारे हिस्से में आएँ.
...कुछ मित्रताएँ तोड़ना कभी-कभी बहुत मुश्किल हो जाता है. पर अगर मुझे स्टूडियो में जाकर सोचना पड़े कि हर महत्त्वपूर्ण बात से बचते हुए, फालतू बातों पर बात करते रहो, और कम से कम आनेवाले कल को लेकर तो अपने विचार अपने पास ही रखो - तो वह मुझे एक अलगाव की अपेक्षा अधिक दुःख देगा. मेरे निकट सच्ची मित्रता का महत्त्व बहुत अधिक है और उसके एवज में तथाकथित मित्रता को जगह देना संभव नहीं. अगर दोस्ती की इच्छा दोनों ओर से यक्साँ हो, तब कई मतभेद होते हुए भी, अलगाव उतनी सहजता से नहीं आ पाता - कुछ ग़लतफ़हमियाँ या लड़ाइयाँ होती भी हैं तो वे समय के साथ मिटती जाती हैं. लेकिन नकली मित्रता में कड़वाहट का आना तय है - चूँकि उसमें स्वतंत्रता की कोई जगह नहीं है. भले ही व्यक्ति अपने असली भावों को अभिव्यक्ति ना दे, वह (वे) दबे पाँवों आकर उस सम्बन्ध को घुन की तरह लग जाते हैं और दोनों में से किसी को कोई भी लाभ पहुँचा सकने में असमर्थ होते हैं. जहाँ मित्रता मात्र एक शब्द है, वहाँ अविश्वास है और उससे जुड़े सब तरह के षडयंत्र भी. यहाँ थोड़ी सी आपसी समझ और सच्चाई, जीवन की कठिनाई काफी कम कर सकती है.
...तो विदा भाई, जल्द लिखना.
तुम्हारा ही विन्सेंट
लेखक - विन्सेंट वान गॉग
संग्रह - मुझ पर भरोसा रखना, विन्सेंट वान गॉग के पत्र भाई थियो के नाम
अनुवाद और संपादन - राजुला शाह
प्रकाशक - सीज़नग्रे, कोलकाता, 2011
अनुवाद और संपादन - राजुला शाह
प्रकाशक - सीज़नग्रे, कोलकाता, 2011
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